सीधा रहता खोल में, बांकी टेढ़ा डार।। सीधा रहता खोल में, बांकी टेढ़ा डार।।
निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें
ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा। ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा।
क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार
जो छुूट रहा उस भीड़ में कहीं उस पल को गांव में आकर हमने कही जिया।। जो छुूट रहा उस भीड़ में कहीं उस पल को गांव में आकर हमने कही जिया।।
फिर धकेला जाता है जीव जीने के लिए यहां से वहाँ दो दरवाजे पर। फिर धकेला जाता है जीव जीने के लिए यहां से वहाँ दो दरवाजे पर।